ग़ज़ल
तुम ही हों नर्गिस गुलाब हो तुम
चमन का खिलता शबाब हो तुम
वरक वरक पर है नाम जिसका
वो ज़िंदगी की किताब हो तुम
लिखूँ मैं तुमको पढ़ूँ मैं तुमको
मोहब्बतों का निसाब हो तुम
शगुफ्ता चेहरा अदाएं दिलकश
मेरा हसीं माहताब हो तुम
जो दिल के तारों को मेरे छेड़े
वही खनकता रबाब हो तुम
बदन, बदन पर हैं सौ खरोंचें
बदन, बदन का हिसाब हो तुम
वो कह रहे हैं मेरे सवालों का
एक "शिज़ा" जवाब हो तुम
शिज़ा जलालपुरी
जलालपुर, उत्तर प्रदेश
Ghazal
You are the narcissus, the rose
You are the blooming youth of the garden
The name on every page
You are the book of life
I write you, I read you
You are the curriculum of love
Blossoming face, captivating gestures
You are my beautiful moon
The one who strums the strings of my heart
You are the resonating lute
Body, body has a hundred scratches
You are the account of the body, body
They are saying to my questions
You are a "Shiza" answer
Shiza Jalalpuri
Jalalpur, Uttar Pradesh
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