Favourite Couplets of Ustad Daag Delhvi - Urdu and Hindi Shayari Blog

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Wednesday, February 16, 2022

Favourite Couplets of Ustad Daag Delhvi


اردو کے مشہور شاعر دغ دہلوی 1831 میں پیدا ہوئے تھے۔ سن 1905 میں ان کا انتقال ہوا۔ ان کی پیدائش کی جگہ دہلی کا لال قلعہ سمجھا جاتا تھا۔ داغ بہادر شاہ ظفر پوتے تھے۔ ان کے والد شمس الدین خان نواب لوہارو کے بھائی تھے۔ داغ کے والد کی عمر چھ سال تھی جب وہ فوت ہوگئے۔ بعد میں داغ نے استاد ذوق کو اپنا سرپرست بنایا.
گلزار داغ ، آفتابِ داغ ، ماہتابِ داغ ،  ان کے چار دیوان ہیں۔فریادِ داغ ان کی ایک مثنوی ہے


उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग देहलवी का जन्म 1831 में हुआ था। निधन 1905 में हुआ था। इनका जन्म स्थान दिल्ली के लाल किले को माना जाता था। दाग बहादुर शाह जफर के पोते थे। इनके पिता शम्सुद्दीन खां नवाब लोहारू के भाई थे। दाग के पिता का जब इंतकाल हुआ तब वह छह वर्ष के थे। बाद में दाग ने जौक को अपना गुरु बनाया। गुलजारे दाग, आफ्ताबे दाग, माहतादे दाग, यादगारे दाग इनके चार दीवान हैं। फरियादे दाग इनकी एक मसनबी है।


The famous Urdu poet Daag Dehalvi was born in 1831. He died in 1905. His birthplace is considered to be the Red Fort of Delhi. Daag Bahadur Shah was the grandson of Zafar. His father Shamsuddin Khan was the brother of Nawab Loharu. Daag's father was six when he died. Later Daag made Ustad Zauq his mentor. Gulzare Dag, Aftabe Dag, Mahtade Dag, Yadgare Dag are his four Diwan. Faryad-e-Daag is one of his favorite Masnavi (poem).

داغ دہلوی کے پسندیدہ اشعار

woh kehte hain patthar dil roya nahi karte
unhen kya khabar paani ke chashme pattharon se nikalte hain

woh kehte hain patthar dil roya nahi karte--daagh

Khatir Se ya Lihaaz Se Me Maan To Gaya...


ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया

हिस्रो हविसो ताबो तवां, दाग़ जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं, सामान तो गया

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाएसे तर्के मुलाक़ात, बताते भी नहीं 

खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ छिपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं 

देख के मुझको महफिल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है इसे लोग उठाते भी नहीं 

ज़ीस्त से तंग हो दाग़ तो जीते क्युं हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं 

दाग़ देहलवी

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