اردو
کے مشہور شاعر دغ دہلوی 1831
میں
پیدا ہوئے تھے۔ سن 1905
میں
ان کا انتقال ہوا۔ ان کی پیدائش کی جگہ
دہلی کا لال قلعہ سمجھا جاتا تھا۔ داغ
بہادر شاہ ظفر پوتے تھے۔ ان کے والد شمس
الدین خان نواب لوہارو کے بھائی تھے۔ داغ
کے والد کی عمر چھ سال تھی جب وہ فوت ہوگئے۔
بعد میں داغ نے استاد ذوق کو اپنا سرپرست
بنایا.
گلزار
داغ ، آفتابِ داغ ، ماہتابِ داغ ، ان
کے چار دیوان ہیں۔فریادِ داغ ان کی ایک
مثنوی ہے
उर्दू के प्रसिद्ध
शायर दाग देहलवी का जन्म 1831 में हुआ था। निधन
1905 में हुआ था। इनका जन्म स्थान
दिल्ली के लाल किले को माना जाता था। दाग बहादुर शाह जफर के पोते थे। इनके पिता शम्सुद्दीन
खां नवाब लोहारू के भाई थे। दाग के पिता का जब इंतकाल हुआ तब वह छह वर्ष के थे। बाद
में दाग ने जौक को अपना गुरु बनाया। गुलजारे दाग, आफ्ताबे दाग, माहतादे दाग, यादगारे दाग इनके
चार दीवान हैं। फरियादे दाग इनकी एक मसनबी है।
اردو
کے مشہور شاعر دغ دہلوی 1831
میں
پیدا ہوئے تھے۔ سن 1905
میں
ان کا انتقال ہوا۔ ان کی پیدائش کی جگہ
دہلی کا لال قلعہ سمجھا جاتا تھا۔ داغ
بہادر شاہ ظفر پوتے تھے۔ ان کے والد شمس
الدین خان نواب لوہارو کے بھائی تھے۔ داغ
کے والد کی عمر چھ سال تھی جب وہ فوت ہوگئے۔
بعد میں داغ نے استاد ذوق کو اپنا سرپرست
بنایا.
گلزار
داغ ، آفتابِ داغ ، ماہتابِ داغ ، ان
کے چار دیوان ہیں۔فریادِ داغ ان کی ایک
مثنوی ہے
उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग देहलवी का जन्म 1831 में हुआ था। निधन 1905 में हुआ था। इनका जन्म स्थान दिल्ली के लाल किले को माना जाता था। दाग बहादुर शाह जफर के पोते थे। इनके पिता शम्सुद्दीन खां नवाब लोहारू के भाई थे। दाग के पिता का जब इंतकाल हुआ तब वह छह वर्ष के थे। बाद में दाग ने जौक को अपना गुरु बनाया। गुलजारे दाग, आफ्ताबे दाग, माहतादे दाग, यादगारे दाग इनके चार दीवान हैं। फरियादे दाग इनकी एक मसनबी है।
The famous Urdu
poet Daag Dehalvi was born in 1831. He died in 1905. His birthplace is
considered to be the Red Fort of Delhi. Daag Bahadur Shah was the grandson of
Zafar. His father Shamsuddin Khan was the brother of Nawab Loharu. Daag's
father was six when he died. Later Daag made Ustad Zauq his mentor. Gulzare
Dag, Aftabe Dag, Mahtade Dag, Yadgare Dag are his four Diwan. Faryad-e-Daag is
one of his favorite Masnavi (poem).
داغ دہلوی کے پسندیدہ اشعار
woh kehte hain patthar dil roya nahi karte
unhen kya khabar paani ke chashme pattharon se nikalte hain
अब हम भी जाने वाले हैं, सामान तो गया
बाएसे तर्के मुलाक़ात, बताते भी नहीं
खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ छिपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं
देख के मुझको महफिल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है इसे लोग उठाते भी नहीं
ज़ीस्त से तंग हो दाग़ तो जीते क्युं हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं
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