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Tuesday, March 5, 2024

KhawamaKhawa Shayari

 پہلے پہلے شوہر کو ہر موسم بھیگا لگتا ہے 

یوں سمجھو بلی کے بھاگوں ٹوٹا چھیکا لگتا ہے 

پھیکا لنچ اور ڈنر بھی عمدہ اور تیکھا لگتا ہے 

نقلی تیل میں تلا سموسہ اصلی گھی کا لگتا ہے 

شادی ایک چیونگم ہے جو پہلے میٹھا لگتا ہے 

پھر منہ میں جتنا گھولو گے اتنا پھیکا لگتا ہے 

عقد ہوا جب میرا اس دم کوئی چھینکا لگتا ہے 

آئینے میں میرا چہرہ اور کسی کا لگتا ہے 

محفل میں جب گھورا ان کو ایک سہیلی یوں بولی 

بیوی کو تکتا رہتا ہے موا ندیدہ لگتا ہے 

ؔخواہ مخواہ نہ میرا ہی نہ اور کسی کا لگتا ہے 

جتنے شوہر بیٹھے ہیں یہ حال سبھی کا لگتا ہے 

पहले पहले शौहर को हर मौसम भीगा लगता है 
यूँ समझो बिल्ली के भागों टूटा छीका लगता है 

फीका लंच और डिनर भी उम्दा और तीखा लगता है 
नक़ली तेल में तल्ला समोसा असली घी का लगता है 

शादी एक च्युइंगम है जो पहले मीठा लगता है 
फिर मुँह में जितना घोलोगे उतना फीका लगता है 

अक़द हुआ जब मेरा उस दम कोई छींका लगता है 
आईने में मेरा चेहरा और किसी का लगता है 

महफ़िल में जब घूरा उन को एक सहेली यूँ बोली 
बीवी को तकता रहता है मुआ न-दीदा लगता है 

'ख़्वाह-मख़ाह' न मेरा ही न और किसी का लगता है 
जितने शौहर बैठे हैं ये हाल सभी का लगता है 

source: rekhta.org

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