آنکھ بھر آئی کسی سے جو ملاقات ہوئی
خشک موسم تھا مگر ٹوٹ کے برسات ہوئی
دن بھی ڈوبا کہ نہیں یہ مجھے معلوم نہیں
جس جگہ بجھ گئے آنکھوں کے دئے رات ہوئی
کوئی حسرت کوئی ارماں کوئی خواہش ہی نہ تھی
ایسے عالم میں مری خود سے ملاقات ہوئی
ہو گیا اپنے پڑوسی کا پڑوسی دشمن
آدمیت بھی یہاں نذر فسادات ہوئی
اسی ہونی کو تو قسمت کا لکھا کہتے ہیں
جیتنے کا جہاں موقع تھا وہیں مات ہوئی
اور جوانی میں بڑھاپے سے ملاقات ہوئی
ؔمنظربھوپالی
कोई बचने का नहीं सब का पता जानती है
किस तरफ़ आग लगाना है हवा जानती है
उजले कपड़ों में रहो या कि नक़ाबें डालो
तुम को हर रंग में ये ख़ल्क़-ए-ख़ुदा जानती है
रोक पाएगी न ज़ंजीर न दीवार कोई
अपनी मंज़िल का पता आह-ए-रसा जानती है
टूट जाऊँगा बिखर जाऊँगा हारूँगा नहीं
मेरी हिम्मत को ज़माने की हवा जानती है
आप सच बोल रहे हैं तो पशेमाँ क्यूँ हैं
ये वो दुनिया है जो अच्छों को बुरा जानती है
आँधियाँ ज़ोर दिखाएँ भी तो क्या होता है
गुल खिलाने का हुनर बाद-ए-सबा जानती है
आँख वाले नहीं पहचानते उस को 'मंज़र'
जितने नज़दीक से फूलों की अदा जानती है
My eyes filled with tears upon meeting
someone
Though the weather was dry, it rained
heavily
I'm not sure if the day had ended yet
The moment the light in my eyes dimmed,
night fell
There was no longing, no desire, no wish
In such a state, I met myself
Neighbors have become enemies of
neighbors
Humanity here has been sacrificed to
riots
This inevitable fate is what we call
destiny
I lost right where I had the chance to
win
My childhood passed without any toys
And in my youth, I met old age
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